फ़ातिमा लतीफ़:
"मेरे कैंपस से इलीटिज़्म, जातिवाद, वर्गवाद और इस्लामोफ़ोबिया की बू आती है", आईआईटी मद्रास के छात्रों ने अपने फेसबुक पन्नों पर इस तरह की शिकायतें की हैं.
फ़ातिमा लतीफ़, डॉक्टर पायल ताडावी, रोहित वेमुला - लिस्ट लंबी है, लेकिन इन नामों में एक बात है जो कॉमन है.
ये उन छात्रों के नाम हैं, जो अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यक तबकों से आते हैं. पढ़ाई पूरी करने के लिए ये छात्र प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थान में पहुंचे, लेकिन अपना लक्ष्य हासिल करने से पहले ही इन्होंने आत्महत्या कर ली.
जब इन छात्रों की आत्महत्या की ख़बरें ब्रेकिंग न्यूज़ बनी, तो मीडिया से कहा गया कि इसकी वजह परीक्षा में कम नंबर, ख़राब प्रदर्शन, कम अटेंडेंस और दिमाग़ी तनाव था.
लेकिन फ़ातिमा के पिता अब्दुल लतीफ़ ने आत्महत्या के लिए संस्थान के एक प्रोफेसर को ज़िम्मेदार बताया है और उनकी गिरफ्तारी की मांग की है.
वहीं फ़ातिमा की मां ने मीडिया से कहा है कि उनकी बेटी मुसलमान के तौर पर अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं करना चाहती थी इसलिए वो हिजाब या शॉल नहीं पहनती थी.
उन्होंने कहा, "देश के माहौल को देखकर हमें लगा था कि उसके लिए चेन्नई एक सुरक्षित जगह होगी. लेकिन हमने उसे खो दिया."
फ़ातिमा के पिता ने कहा, "वो आत्महत्या करने वाली इंसान नहीं थी. वो सरकारी अधिकारी बनना चाहती थी. उसकी मौत आत्महत्या नहीं लगती. उसे रस्सी कहां से मिल गई? उसकी मौत के तुरंत बाद कमरा साफ़ क्यों कर दिया गया? उसका मोबाइल पुलिस के पास है, वो चिट्ठियां लिखने वाली इंसान थी. कुछ भी फ़ैसला लेने से पहले उसने ज़रूर पूरी बात लिखी होगी. हमने पुलिस से कहा कि वो हमारे सामने उसका मोबाइल खोलकर दिखाए."
आईआईटी मद्रास के छात्र फ़ातिमा के मामले में जांच जल्दी पूरी करने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने प्रदर्शन भी किया है.
फ़ातिमा के साथ पढ़ने वाले दो छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर भी बैठे हैं और वो फ़ातिमा के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं.
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