नए कानून :
राज्य का अपनी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code-CrPC) था जिसे अब केंद्रीय आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Central CrPC) द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा।
कश्मीर के CrPC में कई प्रावधान केंद्रीय CrPC से अलग हैं। CrPC में संशोधन राज्य की आवश्यकता के अनुरूप किया जायेगा, लेकिन इन सभी पहलुओं पर अंतिम निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिया जायेगा।
केंद्र के यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम द्वारा (Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act) प्रतिस्थापित महिलाओं और बच्चों के संरक्षण से संबंधित कानून में राज्य-विशिष्ट मुद्दों को शामिल किया जा सकता है।
यदपि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिये आरक्षण के प्रावधान को पहले ही एक संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया है परंतु केंद्र सरकार केंद्रीय अधिनियम से कुछ प्रावधान इसमें जोड़ सकता है। वे कानून जो राज्य की विशिष्टता के आधार पर शामिल किये जा सकते है।
केंद्र और राज्य के किशोर न्याय अधिनियमों में किशोरों की उम्र सीमा का निर्धारण विवाद का प्रमुख बिंदु है।
केंद्रीय अधिनियम 16 वर्ष से अधिक आयु के किशोर को वयस्क मानता है जबकि राज्य अधिनियम में यह आयु सीमा 18 वर्ष है।
यह तर्क दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर में विशेष स्थिति को देखते हुए जहाँ किशोरों को अक्सर हिंसक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेते पाया जाता है इस स्थिति में केंद्रीय अधिनियम को जम्मू-कश्मीर में लागू करने पर वहां के बहुत से किशोरों का भविष्य ख़राब हो सकता है।
राज्य के आरक्षण कानून जाति के आधार पर आरक्षण को मान्यता नहीं देते हैं।
राज्य ने नियंत्रण रेखा (Line of Control-LoC) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट रहने वाले तथा पिछड़े क्षेत्रों के नागरिकों के लिये क्षेत्र-वार आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया है।
हालाँकि राज्य की आबादी में 8% अनुसूचित जाति और 10% अनुसूचित जनजाति शामिल हैं परंतु राज्य में क्षेत्रीय विभिन्नता विद्यमान है जैसे लद्दाख में अनुसूचित जाति की संख्या शून्य है परन्तु अनुसूचित जनजाति की आबादी अधिक है।
संपत्ति कैसे साझा की जाएगी.......?
राज्य की परिसंपत्तियों के बँटवारे की तुलना में राज्य का वित्तीय पुनर्गठन करना कहीं अधिक जटिल कार्य है।
अगस्त, 2019 में राज्य के विभाजन को संसद की अनुमति मिलने के कारण प्रशासन वर्ष के मध्य में वित्तीय पुनर्गठन की कार्यवाई में व्यस्त है जो कि एक जटिल प्रशासनिक गतिविधि है।
सरकार ने पूर्व रक्षा सचिव संजय मित्रा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय सलाहकार समिति का गठन किया है जो राज्य की संपत्तियों और देनदारियों को दो केंद्रशासित प्रदेशों के बीच विभाजित करने के लिये सुझाव देगी। इस समिति ने अभी अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।
पुनर्गठन के उद्देश्य से राज्य स्तर पर तीन और समितियों का गठन किया गया है जो राज्य के कर्मियों, वित्त एवं प्रशासनिक मामलों पर सुझाव देंगी।
तीन समितियों ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है लेकिन उनकी सिफारिशों को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
विशेष रूप से जबकि केंद्रशासित प्रदेशों के लिये कुल केंद्रीय बजट 7,500 करोड़ रुपए है, जम्मू और कश्मीर के लिये बजट 90,000 करोड़ रुपए से अधिक है।
उपरोक्त स्थितियों में गृह मंत्रालय कश्मीर के विभाजन की प्रक्रिया को लंबे समय से जारी रख सकता है।
राज्य का अपनी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code-CrPC) था जिसे अब केंद्रीय आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Central CrPC) द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा।
कश्मीर के CrPC में कई प्रावधान केंद्रीय CrPC से अलग हैं। CrPC में संशोधन राज्य की आवश्यकता के अनुरूप किया जायेगा, लेकिन इन सभी पहलुओं पर अंतिम निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिया जायेगा।
केंद्र के यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम द्वारा (Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act) प्रतिस्थापित महिलाओं और बच्चों के संरक्षण से संबंधित कानून में राज्य-विशिष्ट मुद्दों को शामिल किया जा सकता है।
यदपि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिये आरक्षण के प्रावधान को पहले ही एक संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया है परंतु केंद्र सरकार केंद्रीय अधिनियम से कुछ प्रावधान इसमें जोड़ सकता है। वे कानून जो राज्य की विशिष्टता के आधार पर शामिल किये जा सकते है।
केंद्र और राज्य के किशोर न्याय अधिनियमों में किशोरों की उम्र सीमा का निर्धारण विवाद का प्रमुख बिंदु है।
केंद्रीय अधिनियम 16 वर्ष से अधिक आयु के किशोर को वयस्क मानता है जबकि राज्य अधिनियम में यह आयु सीमा 18 वर्ष है।
यह तर्क दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर में विशेष स्थिति को देखते हुए जहाँ किशोरों को अक्सर हिंसक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेते पाया जाता है इस स्थिति में केंद्रीय अधिनियम को जम्मू-कश्मीर में लागू करने पर वहां के बहुत से किशोरों का भविष्य ख़राब हो सकता है।
राज्य के आरक्षण कानून जाति के आधार पर आरक्षण को मान्यता नहीं देते हैं।
राज्य ने नियंत्रण रेखा (Line of Control-LoC) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट रहने वाले तथा पिछड़े क्षेत्रों के नागरिकों के लिये क्षेत्र-वार आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया है।
हालाँकि राज्य की आबादी में 8% अनुसूचित जाति और 10% अनुसूचित जनजाति शामिल हैं परंतु राज्य में क्षेत्रीय विभिन्नता विद्यमान है जैसे लद्दाख में अनुसूचित जाति की संख्या शून्य है परन्तु अनुसूचित जनजाति की आबादी अधिक है।
संपत्ति कैसे साझा की जाएगी.......?
राज्य की परिसंपत्तियों के बँटवारे की तुलना में राज्य का वित्तीय पुनर्गठन करना कहीं अधिक जटिल कार्य है।
अगस्त, 2019 में राज्य के विभाजन को संसद की अनुमति मिलने के कारण प्रशासन वर्ष के मध्य में वित्तीय पुनर्गठन की कार्यवाई में व्यस्त है जो कि एक जटिल प्रशासनिक गतिविधि है।
सरकार ने पूर्व रक्षा सचिव संजय मित्रा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय सलाहकार समिति का गठन किया है जो राज्य की संपत्तियों और देनदारियों को दो केंद्रशासित प्रदेशों के बीच विभाजित करने के लिये सुझाव देगी। इस समिति ने अभी अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।
पुनर्गठन के उद्देश्य से राज्य स्तर पर तीन और समितियों का गठन किया गया है जो राज्य के कर्मियों, वित्त एवं प्रशासनिक मामलों पर सुझाव देंगी।
तीन समितियों ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है लेकिन उनकी सिफारिशों को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
विशेष रूप से जबकि केंद्रशासित प्रदेशों के लिये कुल केंद्रीय बजट 7,500 करोड़ रुपए है, जम्मू और कश्मीर के लिये बजट 90,000 करोड़ रुपए से अधिक है।
उपरोक्त स्थितियों में गृह मंत्रालय कश्मीर के विभाजन की प्रक्रिया को लंबे समय से जारी रख सकता है।
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